Tuesday 25 April 2023

माँ

 माँ

 

 माँ अब

अधीर होकर

तर्जनी नहीं तानती

रुकते-रुकते सोचकर बोलती है ।

वह जान ही नहीं पाई

कब देह, गेह और स्नेह की पकड़

ढीली होते-होते उससे छूट गई !

उसकी क्षीण अंगुलियाँ 

दुआओं का हिण्डोला झुलातीं-सी

मानो झुठलातीं हैं 

वाष्पित सत्य को  

जो शाश्वत उपस्थित है ।

 

आसक्तियों के इस जंगल में

मेरी स्वीकारोक्ति गूँजती रहेगी कि ----

माँ, तुम्हारे ही छोटे-बड़े सरोकारों ने 

उदासियों की गहरी खन्दकों से 

मेरी तरल मुस्कान को

बार-बार उबारा

सुदूर वयस तक ।

 

मुझमें रची-बसी अनूठी श्रद्धा

तुम्हारी ही भरपूर दुआओं का

आस्वादन पाकर पनपी है ।

मेरे जीवन की अबूझ सुर से 

तुम अनुपस्थित नहीं हो  माँ  !

 

Friday 21 April 2023

रंग आकाश के

भले ही कितने रंग रखे हैं
मेरे पिटारे में
जानती हूँ भली-भाँति
भर नहीं सकती रंग आकाश में
रच नहीं सकती इन्द्रधनुष
रोक नहीं सकती
लुप्त होते इन्द्रधनुष को !
 
पर, यह भी सच है कि 
रंग सकती हूँ अपनी चुनरी मनभावन रंग से
उस चुनरिया पर
काढ़ सकती हूँ इन्द्रधनुष
पक्के रंगों के धागों से !
 
मैंने जाना कि
मेरे हाथों में जादू है
इतना सब करने का अद्भुत कौशल 
धीरे-धीरे जान पाई
हाथों से ज़्यादा जादू
मेरी आँखों में है
जो देखती हैं कितना कुछ
देखे हुए को सौंप देती हैं मुझे
ज्यों का त्यों
रचती हूँ उस देखे हुए को फिर ज़हन में
देखती हूँ पुनः रचे हुए को
बंद आँखों से।
 
-- कैलाश नीहारिका

 

Wednesday 19 April 2023

शिकारी केवट

इस नये राजधर्म में
सुनो केवट
तुम भी शिकारी ठहरे
देखो तुम्हारे काँटे में मछलियाँ ही नहीं
मगरमच्छ भी आ फँसे हैं  !
भूल गए हैं वे अलमस्त
धूप में पसरना सुस्ताना।
 
कहो ओ मछेरे
शिकार को ठिकाने लगाने से पहले
किससे मिलना तय है ?
पूछती हूँ क्योंकि
तुम्हारी इसी भूमिका से
आगे का परिदृश्य निकलेगा।

                    कैलाश नीहारिका

Saturday 15 April 2023

ढोल बजाना मत

गले पड़े जो ढोल बजाना मत 

खुले अगर कुछ पोल छुपाना मत

छुई-मुई मालूम नहीं कब तक

रचे-बसे दिल खोल चिढ़ाना मत 

अभी-अभी इक बात समझ आई

हँसी बहुत अनमोल रुलाना मत 

बड़ी-बड़ी बातें करते-करते 

रटे-रटाए बोल सुनाना मत 

अजब-गज़ब कारज करना वाज़िब 

घिसा-पिटा-सा रोल निभाना मत

उसे नहीं मालूम कहे कब क्या 

हँसी-ठिठोली में उलझाना मत 

लिया-दिया तो रंग दिखाएगा 

कहे-सुने पर बात बढ़ाना मत 


कैलाश नीहारिका

Thursday 13 April 2023

किसके बिन

सूनी-सूनी रातें हैं खाली-से  दिन
 बिन मौसम के ही बरसे बादल रिमझिम

सबके हिस्से में कैसे आती होंगी
रोज़ सुनहरी किरणें या शबनम झिलमिल

आज हुलस खोकर लौटा लगता है वह
रेशा-रेशा बिखरा आख़िर किसके बिन

गिनते-गिनते सब सुर सरगम भूल गए
थाप बिना जो गूँजा उसकी शिद्दत सुन

अपने हिस्से आई धूप बहुत फीकी
सुर्ख-भुने लम्हे सब मिट्टी में शामिल

                                    कैलाश नीहारिका


Wednesday 12 April 2023

मुश्किल न था

         212     2212    2212

दिन बदल जाते बहुत मुश्किल न था
वे सँभल पाते बहुत  मुश्किल न था

ख्वाहिशों के सब  परिंदे  पस्त हैं
काश उड़  पाते बहुत मुश्किल न था
  
दूरियों तक फ़ैल ही जाता धुआँ
साँस ले पाते बहुत मुश्किल न था

क्यों नहीं मिल बोल लेतीं चाहतें
बात कह पाते बहुत  मुश्किल न था

अश्क़ समझाते कभी बेचैनियाँ
वे समझ जाते बहुत मुश्किल न था

धूल के ज़र्रे उड़े आकाश में
कुछ नमी लाते बहुत मुश्किल न था
 
भीगते-से बोल जो झुठला गए 
सच उगल पाते बहुत मुश्किल न था 

                                            कैलाश नीहारिका 

ज़मीनी रहनुमा


अनकहे कह दी मुक़म्मल बात उसने
इस तरह साझे किये जज़्बात उसने

साफगोई सिर्फ़ किस्सों में नहीं थी
की हक़ीकी राजदां-सी बात उसने
 
क्या कहे वादे अधूरे रह गए जो
हस्तियों की देख ली औकात उसने
 
बदगुमां-सी महफ़िलों का दौर हरसू
दर्ज  की अब रहनुमा की छाप उसने
 
मतलबी इस दौर में मजलिस सरीखे
रात-दिन देखे कई हालात उसने

                           कैलाश नीहारिका