Thursday 14 August 2014

चौकन्ने शिकारी

क्या है कि मुझे अक्सर
सुनना फिर सोचना  है
एक सरोकार मेरे कन्धों पर सवार सदा--
' बचके रहना ' ! ' बचके रहना ' !

जुबानें शरबती
निगाहें मखमली
इरादे नश्तरी !

ये बेआवाज़ अट्टहास करते
मचान बाँधते
चौकन्ने शिकारी मोर्चे सँभालते
बिना सींग, बिना पूँछ, अदीख पंजों से आश्वस्त !

सहजात वासियों की बस्तियों में
फैलाते निरन्तर 
धुँआ ज़हरीला दमघोंटू
सदा गढ़ता आकृतियाँ खतरनाक !

हवाओं में सरसराती सिरचढ़ी-सी फुसफुसाहट
तैरती है दूर तक आजकल ---------
' बचना राधा-वल्लभ ! बचके रहना कनुप्रिया !'

                                          कैलाश नीहारिका



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